पीठ में दर्द होने के बावजूद भी मैक्सवेल ने पीठ न दिखाई और योद्धा की भांति लड़कर जीते!

अकेला चना भले भाड़ न तोड़ पाएं। किंतु सवा चना जरूर भाड़ फोड़ सकता है। कम से कम आज के मैच में ग्लेन मैक्सवेल(एक) और पेट कमिंस(सवा) ने ये जरूर कर दिखाया। एक समय ऑस्ट्रेलिया का स्कोर था- 92 रन पर 7 विकेट। और ऑस्ट्रेलिया ने जब मैच खत्म किया और लक्ष्य के 293 रन बनाएं तब भी उसके सात विकेट ही थे। जीत का विजयी बल्ला लहराते हुए दो जाबांज ग्लेन मैक्सवेल(128 गेंद पर 201 रन) और पेट कमिंस(68 गेंद पर 12 रन) जब पवेलियन की तरफ जा रहे थे तो ये क्लीशे लाइन यथार्थ रूप ले रही थी कि क्रिकेट अनिश्चितताओं का खेल है।

सौंदर्य और प्रोत्साहनों के रूपक में आज एक और रूपक जुड़ गया होगा- जब अपने दल पर भारी संकट आएं तो मैक्सवेल सा पाँव जमा देना। अंगद के पाँव सी शक्ति आज मैक्सवेल के पाँव में दिख रही थी। एक पाँव के सहारे मैक्सवेल खड़े-खड़े छक्के जड़ रहे थे। मैक्सवेल की पीठ में दर्द होने के बावजूद उन्होंने पूरे खेल में पीठ न दिखाई।

मैक्सवेल जब क्रीज पर उतरे तो उस वक्त ऑस्ट्रेलिया के स्कोर था- 49 रन पर 4 विकेट और उनके मुख्य बल्लेबाज आउट होकर जा चुके थे। इतना ही नहीं, उस वक्त अफगान गेंदबाज उमरजई हैट्रिक पर भी थे। किंतु भय से भयभीत हुए बिना मैक्सवेल उस गेंद को खेल जाते है। इसके बाद भी उनके 3 साथियों को मैदान छोड़कर जाना पड़ता है।

यहाँ तक लगता है कि भारतीय उपमहाद्वीप की एक नई-नवेली टीम अफगानिस्तान इस बार विश्वकप के सेमीफाइनल में उतरेगी। चूँकि अफगानिस्तान की क्रिकेट टीम को आकार, नवाचार देने में भारत ने अपने संसाधन और इमोशन दोनों खर्चे है, इसलिए लगभग सभी भारतीय क्रिकेट प्रेमी इस मैच में अफगानिस्तान को जीतते हुए देखना चाहते थे।

मैक्सवेल अपने दैहिक दर्द से लगातार जूझते हुए जब अपनी पारी को बिल्ड अप कर रहे थे उस वक्त तक बहुत से भारतीय दर्शक यही मना रहे थे कि राशिद जल्द ही मैक्सवेल की रशीद काट दे या फिर नबी का जादू चल जाएँ। किंतु कुदरत को आज कुछ और ही मंजूर था तभी मैक्सवेल को दो जीवनदान मिले- शहीदी एक बार उन्हें रन आउट न कर सकें और एक बार मुजीब ने शार्ट फाइन पर उनका कैच छोड़ दिया।

हालांकि मैक्सवेल ने इन जीवनदानो के बाद बिल्कुल एक योद्धा का मानिंद साहसी खेल दिखाया। पूरे मैच के दौरान उन पर एक भी बार किसी भी किस्म का दबाव न दिखा। ऐसा लग रहा था जैसे आज मैक्सवेल को क्रिकेट खेल रहा है। वो बस उसके प्रवाह में बहते जा रहे है। आज के खेल के तकनीकी पक्ष पर मैं इसलिए भी कुछ न लिख पा रहा हूँ क्योंकि आज का मैच खेल के प्रचलित व्याकरणों से परे है। मैक्सवेल का अंतिम विजयी छक्का देखने के बाद यही लगा कि एक क्रिकेट प्रेमी शायद ऐसे मैच को देखने के लिए ही जीवित होता है।

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संकर्षण शुक्ला

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